Verses from Kabir, Rahim, Tulsi Das - Indian Philosphers and sages
I am confident that they will leave you contemplating, just as they have left an indelible mark on me.
Profound -Verses from Indian Texts
In this blog post, I am excited to share some of the philosophical verses, or ‘dohe’, penned by the illustrious Kabir Das, as well as some lines from Rahim Das that have left a profound impact on me from my childhood till today.
I am confident that they will leave you contemplating, just as they have left an indelible mark on me.
गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाँय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय |
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय॥
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥
काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब॥
साई इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, सद्धु न भूखा जाय॥
कबीरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर॥
माटी बोली कुम्हार से,
तू क्यों रोंदे मोये।
एक दिन ऐसा आएगा,
मैं रोंदे तोये॥
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है |
मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है ||
रहीमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय ।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गांठ पड़जाये ॥
होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन हरिनामा। गईं सती जहँ प्रभु सुखधामा॥
मेरा मुझ में कुछ नहीं, जो कुछ है सो तेरा।
तेरा तुझकौं सौंपता, क्या लागै है मेरा॥
पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होइ॥
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाँहिं।
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माँहि॥
साईं इतना दीजिए, जामे कुटुंब समाए मैं भी भूखा न रहूं,
साधु न भूखा जाए |
माया मुई न मन मुवा, मरि-मरि गया सरीर।
आसा त्रिष्णाँ नाँ मुई, यौं कहै दास कबीर॥
I will keep updating this post as comes to my conscious from sub-conscious the verses I heard which had profound impact over me.
Kabir, Rahim, Tulsi - generated by AI ofcourse
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