अपि चेदसि पापेभ्य: सर्वेभ्य: पापकृत्तम: |
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि ||
तो तुम भी ज्ञान की नौका में बैठकर पाप के सागर को पार कर जाओ ।
ये समझलो पार्थ जैसे अग्नि सब कुछ जला कर भस्म कर देती है, वैसे ही ज्ञान की अग्नि कर्म की इच्छा,
कर्म के फल न मिलने पर आने वाले क्रोध और उस क्रोध से उत्पन हुए मोह को भस्म कर देती है ।
हे पार्थ इस मंत्र को हमेशा याद रखो इस संसार में ज्ञान के समान पवित्र करने वाली न कोई वस्तु है न कोई तत्त्व ।